मन मिले तो
अनुबंध अटूट
बिन मिले ही।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पपइया
डॉ. मंजूश्री गर्ग
बाग के कोनों में
देख उगा
‘पपइया’
बाल-मन मुस्काया.
निकाल कर उसे
मिट्टी से
धोया, घिसा
बाजा बनाया.
जब मन में आया
‘पपइया’ बजाया.
नहीं सोच पाया
तब उसका मन
जुड़ा रहता ये ‘पपइया’
कुछ बरस यदि मिट्टी से
एक दिन
बड़ा बनता रसाल-वृक्ष
और
बसंत बहार में
बौरों से लद जाता.
पत्तों में छुप के
कोयल कूकती
गर्मी के आते ही
डाली-डाली
आमों से लद जाती.
गजल
डॉ. मंजूश्री गर्ग
कौन कूची कर लिये घूमते रचनाकार।
बदलते ही मौसम रंग बदल देते रचनाकार।।
गीत सुनाते-सुनाते मधुर मिलन का,
राग विरह में बदल देते रचनाकार।।
कभी दिन, कभी रात, कभी मावस, कभी पूनों,
देखते ही देखते पट बदल देते रचनाकार।।
कभी ईख, कभी सरसों, कभी धान, कभी गेहूँ,
देखते ही देखते फसल बदल देते रचनाकार।।
अभी बाल, अभी युवा, अभी
प्रौढ़, अभी वृद्ध,
देखते ही देखते चेहरा बदल देते रचनाकार।।
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