15 अगस्त 2023, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
श्याम नारायण पाण्डे
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- सन् 1907 ई. आजमगढ़(उत्तर प्रदेश)
पुण्य-तिथि- सन् 1991 ई.
श्याम नारायण पाण्डे का
जन्म श्रावण मास कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को दुमरावँ गाँव में हुआ था। श्याम
नारायण पाण्डे के पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था, वे राजस्थान के कुंभलगढ़ के
महाराज थे। माता का नाम रानी जयवंत कुँवर था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे की
पढ़ाई काशी विद्यापीठ(बनारस) से की थी। काशी से ही हिन्दी में साहित्याचार्य की
डिग्री प्राप्त की थी। श्याम नारायण पाण्डे स्वभाव से सात्विक, ह्रदय से विनोदी और
आत्मा से निर्भीक स्वभाव वाले व्यक्ति थे। आधुनिक युग के वीर रस के कवि थे और दो
दशकों तक कवि मंच से जुड़े रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय अपनी कविता के माध्यम से
स्वतन्त्रता सेनानियों के मन में अप्रतिम जोश का संचार किया। पाण्येजी ने गीतात्मक
शैली के साथ-साथ मुक्त छंद का भी प्रयोग किया। भाषा में सरलता व सहजता के गुण हैं
इसी कारण इनकी रचनायें पढ़ते समय पाठक के सम्मुख चित्र सा बनता जाता है। इन्होंने
इतिहास को आधार बनाकर महाकाव्यों की रचना की व खड़ी बोली का प्रयोग किया।
श्याम नारायण पाण्डे ने
जितनी सहजता से युद्ध की विभीषिका वर्णन किया है उतनी ही सहजता से जीवन के कोमल
पक्षों का वर्णन किया है वो चाहे भाई-भाई के बीच का प्रेम हो या संतान के प्रति
माता-पिता का प्रेम, प्रकृति प्रेम या राष्ट्र प्रेम। हल्दी घाटी युद्ध से पहले का
प्रकृति वर्णन-
गिरि अरावली के तरू के थे
पत्ते-पत्ते निष्कम्प अचल।
वन-बेलि-लता-लतिकायें भी
सहसा कुछ सुनने को निश्चल।
था मौन गगन, नीरव रजनी,
नीरव सरिता, नीरव तरंग।
केवल राणा का सदुपदेश,
करता निशीथिनी-नींद भंग।
श्याम नारायण पांडे
श्याम नारायण पाण्डे की
प्रमुख रचनायें-
महाकाव्य- हल्दीघाटी, जौहर, तुमुल ‘त्रेता के दो
वीर’ खण्डकाव्य का परिवर्धित संस्करण
अन्य रचनायें- माधव,
रिमझिम, आँसू के कण, गोरा वध, रूपमात्र, जय हनुमान, आरती, परशुराम. जय पराजय।
श्याम नारायण पाण्डे को हल्दीघाटी
महाकाव्य के लिये देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बारह महीना-बसंत
डॉ. मंजूश्री गर्ग
बसंत तो हमारे मन में है
बारह महीने रहता है
बस उसे महसूस करना है
आनंद का अनुभव करना है.
ग्रीष्म ऋतु में
शीतल पेय और आइसक्रीम
मधुर मुस्कान लाते हैं.
कौन कहता है! ग्रीष्म ऋतु शुष्क ऋतु है
खरबूजे, तरबूज की सरसता
इसी ऋतु में मिलती है.
बर्षा ऋतु तो
है पावस ऋतु
चारों ओर हरियाली
भीगी-भीगी हवा
पत्तों से झरता पानी
मन लुभाते ही हैं.
पायस फल आम भी
इसी ऋतु में सरसता भरता है.
शरद ऋतु तो
है ही पावन ऋतु
मंद-मंद समीर
स्वच्छ चाँदनी
वृक्षों से झरते
हारसिंगार के फूल
मन में मादकता भरते ही हैं
शिशिर ऋतु भी
नहीं है कम सुहावनि
सखियों संग
धूप में चौपालें
रात गये चाय-कॉफी की पार्टी
मेवा की गुटरगूँ
गन्ने की मिठास
इसी मौसम की
सौगातें हैं
हेमन्त ऋतु है
ले आती है संदेश बसंत का.
अनायास ही
झड़ते पेड़ों से पत्ते
खेतों में खिलने लगते
सरसों के फूल
सोये हुये अरमान
जागने लगते
फिर एक बार
बसन्त ऋतु तो
है बसंत ऋतु
प्रकृति के कण-कण में
नव आनंद, नव उत्साह
नजर आने लगता है.
वृक्ष नये परिधान पहन सज जाते हैं
वहीं पशु-पक्षी ही क्या
वन-तड़ाग तक नव उत्साह से
भर जाते हैं फिर एक बार.
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