Thursday, July 3, 2025

 

पुष्कर तीर्थ

डॉ. मंजूश्री गर्ग

पुष्कर तीर्थ संसार की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला नाग पर्वत की मनोरम श्रृंखला में, समुद्र से 1580 फुट ऊँचाई पर राजस्थान के अजमेर जनपद में नगर से कुछ दूर नैऋत्य कोण में स्थित है। यह नित्य तीर्थ है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाप्रलय के समय समस्त लोकों के नष्ट हो जाने पर भी पुष्कर का अस्तित्व बना रहता है। प्राचीनता में पुष्कर को नारायण के ही समकक्ष माना जाता है।

तीर्थराज पुष्कर मूलतः जगतसृष्टा ब्रह्मा के ज्योतिष्टोम यज्ञ की स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। आततायी दैत्य ब्रजनाथ को मारने के लिये भगवान प्रजापति ने पुष्कर(कमल पुष्प) को आयुध बनाकर फेंका, जिससे पृथ्वी सहित समस्त लोक कंपित हो उठे।

दैत्य नाशक कमल पुष्प जिस स्थान पर गिरा वहीं पुष्कर नामक पवित्र सरोवर बन गया। सांसारिक प्राणियों के पाप हरने के लिये माँ सरस्वती भी ब्रह्मलोक से उतरकर यहाँ आईं तथा सुप्रभा, कनका, चंद्रा एवम् प्राची सरस्वती के रूप में पंचस्रोतस्विनी के रूप में इसी तीर्थ में प्रतिष्ठित हुईं।

इसी पावन तपोभूमि में ब्रह्माजी ने एक सहस्त्र वर्ष तक कठिन तप किया और अंततः ज्योतिष्टोम यज्ञ की दीक्षा ली। प्राचीन सरस्वती के पूर्वभाग में नंदनवन के पास सुरम्य वेदिका निर्मित की गयी। देवध्वनि से सारा वातावरण गूँज उठा। यज्ञ के दर्शन के लिये देव-दानव, यक्ष-राक्षस, किन्नर-गंधर्व, विद्याधर-चारण, नाग एवम् पितर सब एकत्र हो गये। पृथ्वी लोक के भी सभी वर्णों के व्यक्ति इस दिव्य यज्ञ में सम्मिलित हुये।

ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री(सरस्वती) के आने में विलंब हो रहा था, ज्योतिष्टोम यज्ञ दीक्षा की शुभ घड़ी बीती जा रही थी। इधर अर्ध्वायु मंडल ने कहा कि यज्ञ दीक्षा की शुभ घड़ी बीत जाने पर यज्ञ निरर्थक हो जायेगा। फलतः सावित्री के विलंब से ब्रह्माजी भी क्रोधित हो गये। तभी यज्ञ की सार्थकता व विश्व कल्याण की कामना से देवराज इंद्र एक सुंदर गोप कन्या को ले आये। भगवान विष्णु ने उस यशस्विनी कन्या का नाम गायत्री रखा। विष्णुजी के निर्देशानुसार प्रजापति ने गायत्री से गांधर्व विवाह कर, अर्धांगिनी के रूप में अपने साथ यज्ञवेदी पर प्रतिष्ठित किया और यज्ञदीक्षा सम्पन्न की।

सावित्री ने जब ब्रह्माजी के साथ गायत्री को देखा तो उन्होंने क्रोधित होकर ब्रह्माजी को शाप दिया कि एक पुष्कर तीर्थ  के अतिरिक्त कहीं भी आपकी पूजा नहीं होगी। इंद्रादि देवों को भी शाप देकर देवी सावित्री सरोवर के पश्चिम में स्थित रत्नागिरि के शिखर पर घोर तप में लीन हो गयीं। सावित्री के चले जाने के बाद ब्रह्माजी की यज्ञ पत्नी गायत्री ने शाप पीड़ित देवों और याचकों को वरदान देकर संतुष्ट किया तथा सबको ब्रह्मव्रत का उपदेश देते हुये कहा कि कार्तिक पूर्णिमा को इस तीर्थ की पूजा करने वाला धन-धान्य व सर्वविध सुख-सौभाग्य का वरण करेगा। पुष्कर सरोवर में स्नान कर रत्नागिरि स्थित माँ सावित्री के दर्शन करने वाला व्यक्ति ज्योतिष्टोम यज्ञ का ही फल प्राप्त करता है।

पुष्कर तीर्थ में एक अर्धचन्द्राकार निर्मल सरोवर है, जिसके पश्चिम-दक्षिण तट पर ब्रह्माजी का विशाल मन्दिर है जिसमें ब्रह्माजी की चतुर्मुख पद्मासनस्थ मूर्ति स्थापित है। सन् 1809 ई. में दौलतराव सिंधिया के मंत्री श्री गोकुल जी पारिख ने इस पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के गर्भगृह और मुख्य मंडप में शुद्ध चांदी के सिक्के जड़े हैं। अन्य विष्णु वराह मन्दिर, अटमेश्वर मन्दिर, सावित्री मन्दिर, गायत्री शक्तिपीठ, श्री रंगनाथ मन्दिर, श्री रमा बैकुंठ मन्दिर, ज्येष्ठ-मध्य-कनिष्ठ पुष्कर, कपिलाश्रम, अगस्तयाश्रम, पंचकुंड, अजगधेश्वर महादेव और प्राची सरस्वती के मन्दिर प्रसिद्ध हैं। प्रसन्नमन ब्रह्माजी ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के पौत्र पराशर जी को श्री पुष्कर तीर्थ का पुरोहित बनाया।

पुष्कर सरोवर चारों दिशाओं में ऊँची पर्वत श्रेणियों से घिरा है, जिसके कारण जल निकासी का कोई साधन नहीं है। फिर भी इस दिव्य सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल, स्फूर्तिदायक, औषधीय गुणों से युक्त है।

 


Wednesday, July 2, 2025

 

बाँस

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बाँस, ग्रामिनीई कुल की एक घास है जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पायी जाती है. बाँस में प्रकृति को संरक्षित करने का अद्भुत गुण है. इसकी लकड़ी बहुत उपयोगी होती है. छोटी-छोटी घरेलू वस्तुओं से लेकर मकान बनाने तक काम आती है. बाँस का नया उगा पौधा खाने के काम आता है, इसका अचार और मुरब्बा भी पड़ता है. बाँस में अधिक कार्बोहाइड्रेट होने से यह स्वास्थ्यवर्धक भी है. अन्य पौधों की अपेक्षा बाँस का पेड़ अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है. साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में ऑक्सीजन छोड़ता है.

 बाँस की खेती आर्थिक दृष्टि से भी उपयोगी होती है. एक बार बाँस बोने के बाद पाँच साल बाद उपज देने लगते हैं. यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़नेवाले पौधों में से एक है. एक दिन में 121 से.मी. तक इसकी लम्बाई बढ़ जाती है, कभी-कभी कुछ प्रजातियों में इसके बढ़ने की गति 1 मी. प्रति घंटा हो जाती है. इसका तना लम्बा, गाँठदार, प्रायः खोखला और अनेक शाखाओं वाला होता है तने की निचली गाँठों से जड़ें निकलती हैं जो रेशेदार होती हैं इसकी पत्तियाँ लम्बी और नुकीली होती हैं. जब बाँस में फूल खिलते हैं तो उसका जीवन समाप्त हो जाता है. सूखे तने गिरकर रास्ता बंद कर देते हैं, अगले वर्ष वर्षा के बाद बीजों से नयी कलमें फूटती हैं और जंगल फिर हरा हो जाता है.

 बाँस का जीवन एक वर्ष से पचास वर्ष तक का होता है, जब तक की फूल नहीं खिलते. फूल बहुत ही छोटे, रंगहीन, बिना ठंडल के छोटे-छोटे गुच्छों में पाये जाते हैं. साधारणतः बाँस तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और दुर्भिक्ष पड़ता है. शुष्क एवम् गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं. फूल खिलने पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं. बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं. ऐसे बाँस भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाये जाते हैं. यदि फूल खिलने का समय ज्ञात हो तो काट-छाँट कर फूलने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.

 बाँस के द्वारा कागज भी बनाया जाता है. यूनान और भारत में दवाईयाँ बनाने के लिये भी बाँस का प्रयोग किया जाता है.

 फेंगशुई में बाँस का बहुत अधिक महत्व है इसे घरों में सौभाग्य सूचक माना जाता है. काँच के छोटे बर्तन में थोड़ा पानी भरकर, कुछ बाँस की कलमों को लाल रिबन से बाँधकर रखा जाता है. बर्तन में थोड़े से पत्थर भी डाले जाते हैं. इस तरह से फेंगशुई में इस गमले को लकड़ी(बाँस), पृथ्वी(पत्थर), जल, अग्नि(लाल रिबन), धातु(काँच का बर्तन) का प्रतीक माना जाता है.

के छोटे-छोटे गुच्छों में पाये जाते

हैं. साधारणतः बाँस तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और

दुर्भिक्ष पड़ता है. शुष्क एवम् गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं. फूल खिलने पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं. बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं. ऐसे बाँस भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाये जाते हैं. यदि फूल खिलने का समय ज्ञात हो तो काट-छाँट कर फूलने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.

 

बाँस के द्वारा कागज भी बनाया जाता है. यूनान और भारत में दवाईयाँ बनाने के लिये भी बाँस का प्रयोग किया जाता है.

 

फेंगशुई में बाँस का बहुत अधिक महत्व है इसे घरों में सौभाग्य सूचक माना जाता है. काँच के छोटे बर्तन में थोड़ा पानी भरकर, कुछ बाँस की कलमों को लाल रिबन से बाँधकर रखा जाता है. बर्तन में थोड़े से पत्थर भी डाले जाते हैं. इस तरह से फेंगशुई में इस गमले को लकड़ी(बाँस), पृथ्वी(पत्थर), जल, अग्नि(लाल रिबन), धातु(काँच का बर्तन) का प्रतीक माना जाता है.

Tuesday, July 1, 2025

 

 कमल-पुष्प

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कमल हमारा राष्ट्रीय पुष्प है. कमल का फूल देखने में मनमोहक व अधिकांशतः गुलाबी रंग का अति सुन्दर फूल होता है. हिन्दी साहित्य में प्रारम्भिक काल से कवि नायक या नायिका के सुन्दर नयनों की, अधरों की, करों की, पदों की उपमा कमल से देते रहे हैं. भक्तिकाल के कवि सूर और तुलसी ने भी अपने-अपने आराध्य देव कृष्ण और राम के रूप का वर्णन करते समय कमल की उपमा का प्रयोग किया है.

उत्तर प्रदेश में काशीपुर में द्रोणासागर नामक स्थान पर ग्रीष्म काल में कमल-सरोवर का सौन्दर्य देखते ही बनता है, जब द्रोणासागर में कमल के फूल अपने पूर्ण यौवन के साथ खिले होते हैं. इस समय मन्दिरों में भगवान की मूर्तियों पर प्रायः कमल के फूल ही चढ़े हुये देखने को मिलते हैं.

कमल के फूल सुन्दर होने के साथ-साथ बहुपयोगी भी होते हैं. कमल के फूलों के तने जहाँ कमल ककड़ी के नाम से जाने जाते हैं वहीं कमल के फल भी खाने में स्वादिष्ट होते हैं. फलों के अन्दर के बीज कमल गट्टे कहलाते हैं जो पककर काले और भूरे रंग के हो जाते हैं. एक तरफ कमल गट्टे भगवान शिव की पूजा करते समय शिव-लिंग पर चढ़ाये जाते हैं तो दूसरी तरफ कमल गट्टों से ही मखाने बनाये जाते हैं.

 

 


Monday, June 30, 2025


वैनिला(VANILLA)

 

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डॉ. मंजूश्री गर्ग


वैनिला की फसल सर्वप्रथम मैक्सिको के गुल्फकोस्ट घाटी में पाई गयी. आजकल मेडागास्कर में सबसे अधिक उत्पादन होता है. विश्व का लगभग अस्सी प्रतिशत वैनिला का उत्पादन मेडागास्कर में ही होता है.

 

वैनिला बेल जैसे उगती है और किसी पेड़ या खम्भे के सहारे चढ़ती है. वैनिला के फूल हल्के पीले रंग के होते हैं. एक फूल से एक ही फल बनता है. फूल में नर(Anther) और मादा(Stigma) दोनों अंग होते हैं जो एक हल्की सी झिल्ली से जुड़े रहते हैं. पहले एक विशेष मधुमक्खी के द्वारा Pollination की क्रिया होती थी जो मैक्सिको में ही पाई जाती हैं किन्तु अभी कृत्रिम तरीके से हाथ द्वारा Pollination करके फसल उगायी जाती है. वैनिला की फली गहरे भूरे रंग की होती है. जब यह फली पक जाती है, तो फटने से पहले ही इन्हें तोड़ लिया जाता है. इन फली(beans) के अन्दर गहरा लाल रंग का तरल पदार्थ होता है, यही(vanilla essence) होता है, जो कि बहुत मँहगा होता है. मसालों में केसर के बाद vanilla essence का नंबर आता है, किंतु आजकल synthetic vanilla essence भी बाजार में उपलब्ध है.