आ जाओ सनम!
आ जाओ सनम!
महावर कर रही
इंतजार,
पायल की छम-छम
रूठी है।
आ जाओ सनम!
मेंहदी कर रही
इंतजार,
कंगन की खन-खन
रूठी है।
आ जाओ सनम!
बिंदिया कर रही
इंतजार,
अधरों की मुस्कान रूठी है।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
संघर्षमय जीवन
डॉ. मंजूश्री गर्ग
संघर्षों की गाथा पूछो,
नदी की मीठी धारा से।
पग-पग पे सहती आयी,
चट्टानों की चोटें।
संघर्षों की गाथा पूछो,
मुस्काती कली से।
पली, बढ़ी, खिली,
काँटों भरी डाली संग।
संघर्षों की गाथा पूछो,
देदीप्यमान दीप से।
अड़िग अस्तित्व बनाये,
लड़ रहा अंधकार से।
अमृतम, सुगंधमय,
ज्ञानमय बनना है तो
नदी, कली, दीप सा
जीवन जीना
सीखो।
अलौकिक प्रेम......
सिय-राम का
प्रेम अलौकिक
धनुष-यज्ञ शाला
में देख अधीर सिय को
नयनों से ही
करते हैं आश्वस्त श्री राम।
क्षण भर में कर
धनुष भंग, जानकी की ही नहीं,
हरते हैं पीड़ा
जनक परिवार की श्री राम।
पर राम!
राम! सच-सच बतलाना
यदि तुमसे पहले
कोई और
राजकुमार धनुष
की प्रत्यंचा चढ़ा लेता।
तो तुम क्या
करते?
तुम तो
पुष्प-वाटिका में धनुष-यज्ञ से पहले ही
सीता को ह्रदय
समर्पित कर चुके थे।
सीता तो राजा
जनक के प्रण से बँधी थीं;
विवाह उसी से
होना था जो यज्ञशाला में रखे
प्राचीन
शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा।
राम सच-सच
बतलाना
तो तुम क्या
करते?
तुम कैसे सीता
के प्रति अपना एकनिष्ठ प्रेम
निभाते!
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पृथ्वीराज की कलम से
बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच
नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का।
क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, ‘गर
मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का।
क्यों आक्रमणकारी का वो साथ देते।
हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का।
और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका।
संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे.
अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पुरूरवा की कलम से
देवलोक की परी हो तुम
जानता हूँ, इसी से
चाहकर भी कभी
पाने की कोशिश नहीं की।
मुस्कानों के फूल
खिलाता रहा
और गंध की स्याही में
डुबो-डुबो कर लिखता रहा।
भेजता रहा संदेशे
पवन के हाथ।
गंध तुम्हें पसन्द थी
आखिर तुम बेचैन हो गयीं
पाने को उसी गंध को।
प्यार मेरा सच्चा था
इसी से मजबूर हो गयीं
आने को भूलोक पर।
उर्वशी! सच कहूँ
जीवन मेरा
सार्थक हुआ है
बरसों की तपस्या का फल
आज मुझे मिला है।
डॉ. मंजूश्री गर्ग