वो निगाहों में ही इकरार किया, करते रहे,
उस निगाहे यार को ही पहचान नहीं पाया मैं।
संजीव कुमार सुधांशु
तुमसे बँधी प्रीत, अनगिन रिश्ते बन गये।
किसी की मामी, किसी की चाची, किसी की भाभी बन गये ।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
प्यार की बूँदों से सरसते हैं हम,
मृदु मुस्कान से निखरते हैं हम।
नजरों ही नजरों मे करते हैं बातें,
और दिन-दिन सँवरते हैं हम।
मुठ्ठी भर धूप उछाल दो,
गम के बादलों पे।
गम भी मुस्कुरायेंगे।
ओस की बूँदें
हरियाली घास पे
मोती सी सजीं।
मंजिल पानी है 'गर
अवरोधों से डरना कैसा।
कौन है? जिसने ताप सहा नहीं
सूरज जैसा चमका जो भी।
दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।
आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।