सूरज नहीं
देखो उजाले लिये
आये हैं हम।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
तेरी मुस्कान
कड़कती सर्दी में
धूप सरीखी।
हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी,
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते।
नित्यानंद तुषार
छोड़ दो तुम हाथ,
चलने दो, दो कदम,
डगमगाते ही सही।
दृढ़ता वही देंगे,
मीलों के सफर की।
चाहतें हों खूबसूरत
अधूरी भी अच्छी।
रोज रंगीन सपने
सजाती जीवन में।
हकीकत में ना सही,
ख्वाबों में ही सही।
पल भर जी लेते हैं,
मुस्कुरा लेते हैं पल भर।
ताँबा बिना ना सोना गढ़ता।
फिर भी ताँबा ताँबा ही रहता।।