Wednesday, November 20, 2024


नजर में सज के नगीना बन गये।

गिर गये तो कहलायेंगे पत्थर।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 19, 2024


माँ को भूले, माटी भूले

भूल गये गाँव शहर।

पिज्जा, बर्गर की खुशबू में

भूले रोटी की महक।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, November 18, 2024


खारे आँसू सारे सागर ने पी लिये

और मीठा जल लिये बहती रही नदी।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 

तारे झिलमिलायें

चाँद मुस्कुराये।

रात में तुम आये

मन भी गुनगुनाये।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 17, 2024


बहने दो स्नेह की सहज, सरस, मधुर धारा।

सिंचित हो जिससे महके जीवन की बगिया।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 15, 2024


 ठोकर नहीं कहती कि रोक दो बढ़ते कदम।

कहती है बढ़ते रहो आगे सँभल-सँभल कर।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 14, 2024


जीवन खिले तो खिले ऐसे जैसे खिले डाल पर फूल,

उपवन को सजाये और पवन को महकाये।

यश फैले तो फैले ऐसे जैसे फैलें प्रातः की किरणें

अंधकार को दूर करें और उजियारा फैलायें।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग