मुठ्ठी भर धूप उछाल दो,
गम के बादलों पे।
गम भी मुस्कुरायेंगे।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
ओस की बूँदें
हरियाली घास पे
मोती सी सजीं।
मंजिल पानी है 'गर
अवरोधों से डरना कैसा।
कौन है? जिसने ताप सहा नहीं
सूरज जैसा चमका जो भी।
दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।
आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।
कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,
टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।
मोहक दृश्य
गंगा की धारा पर
तैरते दीप।
मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।
उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।