Thursday, May 1, 2025


आज स्वरूप को खोकर ही.......

 

पयस्विनी सी बहना है तो

बर्फ सा गलना होगा।

गहनों में गढ़ना है तो

सोना सा तपना होगा।

आज स्वरूप को खोकर ही

नये रूप में ढ़लना होगा। 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, April 30, 2025


आँखें......

 

बोलती आँखें,

मुस्काती आँखें,

लरजती आँखें,

शराबी आँखें,

डराती आँखें,

बिन कहे, कितना

कहें ये आँखें।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग



 

Tuesday, April 29, 2025


कर्मयोगी श्रीकृष्ण

 

कभी नंद की गायें चरायें,

कभी बजायें बाँसुरी वन में।

कभी सुदामा के पग धोयें,

कभी बने सारथि पार्थ के।


कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण

देते संदेश कर्म करने का। 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग

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Monday, April 28, 2025

 

जिंदगी जीनी नहीं सीखी।

 

किससे करें शिकवा,

खुद ही रहे नासमझ।

प्रीत की।

प्रीत की रीति नहीं सीखी।

जिंदगी जी।

जिंदगी जीनी नहीं सीखी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Sunday, April 27, 2025


बढ़े चलें, बढ़े चलें।

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

रूकें नहीं, झुकें नहीं,

बढ़े चलें, बढ़े चलें।

प्रगति पथ पे,

निरन्तर चलें।

देश का हो नाम जग में,

काम ऐसा कर चलें।

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Saturday, April 26, 2025

 

कर सोलह श्रृंगार

 

कर सोलह श्रृंगार

साँझ की दुल्हन बैठी है.

सूरज की लालिमा

माथे पे सजा.

पहन कर

सितारों जड़ी चूनर.

लगाकर

रात का काजल.

कर रही इंतजार

कब आओगे पाहुने!


        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, April 25, 2025

 

बूँद-बूँद से-----

 

बूँद-बूँद से समुद्र बने

फूल-फूल से उपवन

तुम अपने को कम

मत समझो, तुमसे ही

देश और विश्व बने।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग