Tuesday, November 25, 2025


मुठ्ठी भर धूप उछाल दो,

गम के बादलों पे।

गम भी मुस्कुरायेंगे।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, November 24, 2025


 ओस की बूँदें

हरियाली घास पे

मोती सी सजीं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 23, 2025


मंजिल पानी है  'गर

अवरोधों से डरना कैसा।

कौन है? जिसने ताप सहा नहीं

सूरज जैसा चमका जो भी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 22, 2025


दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।

आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 21, 2025

कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,

टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 20, 2025


मोहक दृश्य

गंगा की धारा पर

तैरते दीप।

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 19, 2025


मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग