Monday, September 15, 2025

 

कत्था

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

पान का हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। पूजा-अर्चना में ही नहीं, प्रायः भोजन के पश्चात् हमारे यहाँ पान खाने की परम्परा है। पान बनारस का हो या कलकत्ता का सभी में कत्था अवश्य लगाया जाता है। पान खाने से जो होंठ और मुँह लाल होते हैं वो कत्थे के कारण ही होते हैं।

कत्था हमें खैर नामक पेड़ की लकड़ी से प्राप्त होता है। खैर एक प्रकार का बबूल का पेड़ है। इस वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबाल कर और उसके रस को जमा कर कत्था बनाया जाता है, जो पान में चूने के साथ लगाया जाता है।

खैर को कथकीकर और सोनकर भी कहते हैं। यह समस्त भारत में पाया जाता है। जब खैर के पेड़ का तना लगभग 12 इंच मोटा हो जाता है तो इसे काट लेते हैं और छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर गर्म पानी में पकाते हैं। गाढ़ा रस निकालने के बाद चौड़े बर्तन में खुला रख कर सुखाया जाता है। सूखने के बाद चौकोर आकार का काट लेते हैं। यही कत्था होता है जिसे पानी में घोलकर पान की पत्ती पर लगाया जाता है। मुँह के फंगल इंफेक्शन में भी कत्था बहुत लाभकारी होता है। मुँह में छाले होने पर सूखा कत्था छोटी हरी इलायची के साथ मुँह में रखने से आराम मिलता है।

 

 

 

 

                 


Sunday, September 14, 2025


14 सितंबर 2025 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

सभी वरिष्ठ महानुभावों, विद्वानों, साहित्यकारों व राजनीतिज्ञों को ह्दय से आभार व्यक्त करती हूँ जिनके अथक प्रयासों से आज के ही दिन हिन्दी भाषा को भारत की राष्ट्र भाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ।

एवम्

सभी हिन्दी साहित्यकारों को शत्-शत् नमन, जो हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में सतत् प्रयत्नशील हैं।

         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, September 13, 2025

 

 

नटराज(शिव) की प्रतिमा


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

शिव कल्याण के देवता हैं इसीलिये अमृतमंथन के समय समुद्र से निकले विष को शिव ने स्वयं पान कर देवता और दानवों को अभय दान दिया। शिव स्वयं विषपायी कहलाये पर विष को कंठ से नीचे नहीं जाने दिया. इसी से शिव नीलकंठ कहलाये।

 

सृष्टि के दो पक्ष हैं सृजन और विनाश। जब प्रलय के बाद नव सृष्टि की रचना करनी होती है तो शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ मिलकर लास्य नृत्य करते हैं और जब संसार में पापाचार, अत्याचार अधिक बढ़ जाते हैं तो शिव सृष्टि के विनाश के लिये क्रुद्ध होकर तांडव नृत्य करते हैं।

 

नटराज की प्रतिमा में शिव के नृत्य के दोनों भावों अर्थात् लास्य नृत्य और तांडव नृत्य को दर्शाया गया है। नटराज की प्रतिमा में शिव के चार हाथ दर्शाये गये हैं- प्रथम दाहिने हाथ में डमरू है- जो नाद का प्रतीक है- सभी भाषाओं, व्याकरण, कलाओं और साहित्य का मूल स्रोत है। प्रथम बायें हाथ में अग्नि-शिखा है जो बुराई का विनाश करने की प्रतीक है। दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है जो सतपथ पर चलने वाले मानवों को रक्षा का भरोसा देता है। दूसरा बाँया हाथ नृत्य की मुद्रा में स्वतंत्र रूप से ऊपर उठे पैर की ओर इशारा करता है। नृत्य की मुद्रा में दाहिना पैर एक राक्षस को दबाये है और बाँया पैर स्वतंत्र रूप से ऊपर उठा हुआ है।


Friday, September 12, 2025

 

वैजयंती माला

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

वैजयंती माला विष्णु भगवान को बहुत प्रिय है और श्री कृष्ण की प्रिय पाँच वस्तुओं(गाय, बाँसुरी, मोरपंख, माखन-मिश्री और वैजयंती माला) में से एक है। वैजयंती माला का शाब्दिक अर्थ है विजय दिलाने वाली माला।

वैजयंती के पत्ते हरे रंग के और एक मीटर तक लंबे होते हैं और दो इंच के लगभग चौड़े होते हैं। ये पत्ते सीधे जमीन से निकलते हैं इनमें कोई तना या टहनी नहीं होती। वैजयंती के पौधे में कोई फूल नहीं आता, एक बीज फली के साथ निकलता है। बीज में ही जुड़ा हुआ पराग होता है। ऊपर से पराग तोड़कर बीज प्राप्त किया जाता है जो एक मोती के समान चमकीला होता है। प्रारम्भ में यह हरे रंग का होता है पकने पर भूरे रंग का हो जाता है। वैजयंती बीज कमल गट्टा(कमल का बीज) के आकार का होता है। वैजयंती का पौधा कैना-लिली(केलई) से भिन्न होता है।

वैजयंती बीज की विशेषता है कि इसमें धागा डालने के लिये प्राकृतिक रूप से छेद बना होता है। वैजयंती माला को धारण करने के लिये सोमवार और शुक्रवार का दिन शुभ है।


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Wednesday, September 10, 2025


सर्दी में धुंध छँटी, गर्मी में धूल।

धूप धुली बारिश प्रखर हो गयी।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 7, 2025


छाया तो छाया है, छाया का अस्तित्व क्या?

जब तक साथ हो तुम, है वजूद मेरा।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Wednesday, September 3, 2025


सुनहरी यादें बीते कल की

सुनहले सपने फिर कल के।

तैरते आँखों में पल-प्रतिपल।

मानों सुबह-शाम के बीच

बैठें हों हम भरी धूप में।

 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग