आज स्वरूप को खोकर ही.......
पयस्विनी सी बहना है तो
बर्फ सा गलना होगा।
गहनों में गढ़ना है तो
सोना सा तपना होगा।
आज स्वरूप को खोकर ही
नये रूप में ढ़लना होगा।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
आँखें......
बोलती आँखें,
मुस्काती आँखें,
लरजती आँखें,
शराबी आँखें,
डराती आँखें,
बिन कहे, कितना
कहें ये आँखें।
कर्मयोगी श्रीकृष्ण
कभी नंद की गायें चरायें,
कभी बजायें बाँसुरी वन में।
कभी सुदामा के पग धोयें,
कभी बने सारथि पार्थ के।
कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण
देते संदेश कर्म करने का।
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जिंदगी जीनी नहीं सीखी।
किससे करें शिकवा,
खुद ही रहे नासमझ।
प्रीत की।
प्रीत की रीति नहीं सीखी।
जिंदगी जी।
बढ़े चलें, बढ़े चलें।
रूकें नहीं, झुकें नहीं,
प्रगति पथ पे,
निरन्तर चलें।
देश का हो नाम जग में,
काम ऐसा कर चलें।
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कर सोलह श्रृंगार
साँझ की दुल्हन बैठी है.
सूरज की लालिमा
माथे पे सजा.
पहन कर
सितारों जड़ी चूनर.
लगाकर
रात का काजल.
कर रही इंतजार
कब आओगे पाहुने!
बूँद-बूँद से-----
बूँद-बूँद से समुद्र बने
फूल-फूल से उपवन
तुम अपने को कम
मत समझो, तुमसे ही
देश और विश्व बने।