दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।
आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,
टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।
मोहक दृश्य
गंगा की धारा पर
तैरते दीप।
मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।
उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।
राह तकते
बीत गये बरसों
राह ना सूझे।
कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।
सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।
रेतीले तट पर लगते, मेले मावस-पूनों।
जलते अनगिन दीप, गंगा की धारा पर।।
हर चीज एक-दूसरे से
घुली-मिली हैं
जड़ें रोशनी में हैं
रोशनी गंध में
गंध विचारों में
विचार स्मृतियों में
स्मृतियाँ रंगों में------
केदारनाथ सिंह