Saturday, November 22, 2025


दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।

आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 21, 2025

कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,

टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 20, 2025


मोहक दृश्य

गंगा की धारा पर

तैरते दीप।

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 19, 2025


मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 18, 2025


राह तकते

बीत गये बरसों

राह ना सूझे।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

            

Monday, November 17, 2025


कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पर लगते, मेले मावस-पूनों। 

जलते अनगिन दीप, गंगा की धारा पर।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 16, 2025

 

हर चीज एक-दूसरे से

घुली-मिली हैं

जड़ें रोशनी में हैं

रोशनी गंध में

गंध विचारों में

विचार स्मृतियों में

स्मृतियाँ रंगों में------

            केदारनाथ सिंह