पुष्कर तीर्थ
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पुष्कर तीर्थ संसार की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला नाग पर्वत की मनोरम श्रृंखला
में, समुद्र से 1580 फुट ऊँचाई पर राजस्थान के अजमेर जनपद में नगर से कुछ दूर
नैऋत्य कोण में स्थित है। यह नित्य तीर्थ है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
महाप्रलय के समय समस्त लोकों के नष्ट हो जाने पर भी पुष्कर का अस्तित्व बना रहता
है। प्राचीनता में पुष्कर को नारायण के ही समकक्ष माना जाता है।
तीर्थराज पुष्कर मूलतः जगतसृष्टा ब्रह्मा के ज्योतिष्टोम यज्ञ की स्थली के रूप
में प्रसिद्ध है। आततायी दैत्य ब्रजनाथ को मारने के लिये भगवान प्रजापति ने पुष्कर(कमल
पुष्प) को आयुध बनाकर फेंका, जिससे पृथ्वी सहित समस्त लोक कंपित हो उठे।
दैत्य नाशक कमल पुष्प जिस स्थान पर गिरा वहीं पुष्कर नामक पवित्र सरोवर बन
गया। सांसारिक प्राणियों के पाप हरने के लिये माँ सरस्वती भी ब्रह्मलोक से उतरकर
यहाँ आईं तथा सुप्रभा, कनका, चंद्रा एवम् प्राची सरस्वती के रूप में पंचस्रोतस्विनी
के रूप में इसी तीर्थ में प्रतिष्ठित हुईं।
इसी पावन तपोभूमि में ब्रह्माजी ने एक सहस्त्र वर्ष तक कठिन तप किया और अंततः
ज्योतिष्टोम यज्ञ की दीक्षा ली। प्राचीन सरस्वती के पूर्वभाग में नंदनवन के पास
सुरम्य वेदिका निर्मित की गयी। देवध्वनि से सारा वातावरण गूँज उठा। यज्ञ के दर्शन
के लिये देव-दानव, यक्ष-राक्षस, किन्नर-गंधर्व, विद्याधर-चारण, नाग एवम् पितर सब
एकत्र हो गये। पृथ्वी लोक के भी सभी वर्णों के व्यक्ति इस दिव्य यज्ञ में सम्मिलित
हुये।
ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री(सरस्वती) के आने में विलंब हो रहा था,
ज्योतिष्टोम यज्ञ दीक्षा की शुभ घड़ी बीती जा रही थी। इधर अर्ध्वायु मंडल ने कहा
कि यज्ञ दीक्षा की शुभ घड़ी बीत जाने पर यज्ञ निरर्थक हो जायेगा। फलतः सावित्री के
विलंब से ब्रह्माजी भी क्रोधित हो गये। तभी यज्ञ की सार्थकता व विश्व कल्याण की
कामना से देवराज इंद्र एक सुंदर गोप कन्या को ले आये। भगवान विष्णु ने उस यशस्विनी
कन्या का नाम गायत्री रखा। विष्णुजी के निर्देशानुसार प्रजापति ने गायत्री से
गांधर्व विवाह कर, अर्धांगिनी के रूप में अपने साथ यज्ञवेदी पर प्रतिष्ठित किया और
यज्ञदीक्षा सम्पन्न की।
सावित्री ने जब ब्रह्माजी के साथ गायत्री को देखा तो उन्होंने क्रोधित होकर
ब्रह्माजी को शाप दिया कि एक पुष्कर तीर्थ के अतिरिक्त कहीं भी आपकी पूजा नहीं होगी। इंद्रादि
देवों को भी शाप देकर देवी सावित्री सरोवर के पश्चिम में स्थित रत्नागिरि के शिखर
पर घोर तप में लीन हो गयीं। सावित्री के चले जाने के बाद ब्रह्माजी की यज्ञ पत्नी
गायत्री ने शाप पीड़ित देवों और याचकों को वरदान देकर संतुष्ट किया तथा सबको ब्रह्मव्रत
का उपदेश देते हुये कहा कि कार्तिक पूर्णिमा को इस तीर्थ की पूजा करने वाला
धन-धान्य व सर्वविध सुख-सौभाग्य का वरण करेगा। पुष्कर सरोवर में स्नान कर रत्नागिरि
स्थित माँ सावित्री के दर्शन करने वाला व्यक्ति ज्योतिष्टोम यज्ञ का ही फल प्राप्त
करता है।
पुष्कर तीर्थ में एक अर्धचन्द्राकार निर्मल सरोवर है, जिसके पश्चिम-दक्षिण तट
पर ब्रह्माजी का विशाल मन्दिर है जिसमें ब्रह्माजी की चतुर्मुख पद्मासनस्थ मूर्ति
स्थापित है। सन् 1809 ई. में दौलतराव सिंधिया के मंत्री श्री गोकुल जी पारिख ने इस
पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के गर्भगृह और मुख्य मंडप में शुद्ध चांदी
के सिक्के जड़े हैं। अन्य विष्णु वराह मन्दिर, अटमेश्वर मन्दिर, सावित्री मन्दिर,
गायत्री शक्तिपीठ, श्री रंगनाथ मन्दिर, श्री रमा बैकुंठ मन्दिर, ज्येष्ठ-मध्य-कनिष्ठ
पुष्कर, कपिलाश्रम, अगस्तयाश्रम, पंचकुंड, अजगधेश्वर महादेव और प्राची सरस्वती के
मन्दिर प्रसिद्ध हैं। प्रसन्नमन ब्रह्माजी ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के पौत्र पराशर जी
को श्री पुष्कर तीर्थ का पुरोहित बनाया।
पुष्कर सरोवर चारों दिशाओं में ऊँची पर्वत श्रेणियों से घिरा है, जिसके कारण
जल निकासी का कोई साधन नहीं है। फिर भी इस दिव्य सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल,
स्फूर्तिदायक, औषधीय गुणों से युक्त है।
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