हिन्दी साहित्य
Wednesday, March 1, 2017
दोहे
बदल गयी मन की दशा, देख सहज श्रृंगार,
उत्सव के घर में हुआ, मंगल का अवतार।
कैलाश गौतम
गौरी धूप कछार की, हम सरसों के फूल
जब-जब होंगे सामने, तब-तब होगी भूल।
कैलाश गौतम
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