हिन्दी साहित्य
Wednesday, March 22, 2017
सागर मे ंरहे, जलते रहे फिर भी प्यास में
सुख से लदे हुये रहे सुख की तलाश में
कितना तो चैन मिल रहा है छाँव में घर की
है लग रहा कि माँ कहीं बैठी है पास में।
- रामदरश मिश्र
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