हिन्दी साहित्य
Sunday, April 16, 2017
प्रेम की गली बड़ी संकरी
जो इस पे चल पायेगा
मंजिल वही पा जायेगा।
इत गंगा उत यमुना रे
प्रेम धार बहे वही रे
जहाँ संगम हो जाये रे।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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