हिन्दी साहित्य
Thursday, March 29, 2018
कर रही श्रृंगार प्रकृति सुन्दरी,
आयेंगे आज बसंत कुअँर।
नव वल्लरियों से सजा तोरण,
पीत पराग से आपूरित आँगन।
नव किसलयों से सजा वन,
नव सुमनों से सजा उपवन।
पक्षी के रागों में शहनाई की धुन,
कोयल की कुहू में माठी सी धुन।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment