हिन्दी साहित्य
Friday, May 4, 2018
उलझे रहे, उलझे रहे,
उलझे ही रहे हम।
कभी बालों में, कभी बातों में,
कभी यादों में, कभी ख्बाबों में।
उलझे ही रहे हम।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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