हिन्दी साहित्य
Saturday, June 9, 2018
मत अधीर हो धरा, आ पहुँचे पाहुने बादल।
रससिक्त तुम्हें कर, पहनायेंगे चूनर धानी।।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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