हिन्दी साहित्य
Monday, January 14, 2019
ये किस खता की सजा में हैं दोहरी जंजीरें
गिरफ्त मौत की है जिंदगी की कैद में हूँ।
कृष्ण बिहारी नूर
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment