हिन्दी साहित्य
Sunday, March 31, 2019
मंजिल
‘
गर पा ली है,
रूके ना बढ़ते कदम।
मंजिलों से आगे हैं,
मंजिलें और भी।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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