हिन्दी साहित्य
Thursday, May 23, 2019
किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं।
स्थिर समर्पण है हमारा। हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के।
किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।
हम बहेंगें तो रहेंगें ही नहीं।
अज्ञेय
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