हिन्दी साहित्य
Sunday, June 16, 2019
पिता के प्रति अभिव्यक्त उद्गार-
ओ पिता
तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ्तर के
छाँव में हम रह सकें यूँ ही
धूप में तुम रोज जलते हो।
तुम हमें विश्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो।
डॉ0 कुँअर बेचैन
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