हिन्दी साहित्य
Tuesday, July 16, 2019
व्यथित कलियाँ मत मुरझाओ,
कोई ना तुमको चाहेगा.
पल भर जो मुस्काओगी,
किसी के गजरे, किसी के
गले का हार बनोगी.
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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