हिन्दी साहित्य
Monday, December 9, 2019
जिसे है चाह मंजिल तक पहुँचने की कुँअर वो ही
सदा बढ़ता रहा, खाकर भी वो ठोकर नहीं लौटा।
डॉ0 कुँअर बेचैन
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