हारकर तुमसे, और पाते हैं प्यार तुमसे,
ये जीत नहीं तो और क्या है?
लिखना होता नाम अपना, लिखते तुम्हारा,
ये प्रीत नहीं तो और क्या है?
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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