बरस रही है चाँदनी,
चमक रहे हैं रेतीले तट।
नदी और सागर हों,
चाहें कितनी दूरी पे,
एक गगन की छाया में
धड़कने हैं एक दोनों की।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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