विजय-पर्व
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
विजय-पर्व है
मनाओ दशहरा
जलाओ रावण.
पर पहले
अपने मन की
(ईर्ष्या, द्वेष,
कुंठा, भय,
लोभ, मोह,
अहम्, क्रोध,)
बुराईयों को
जलाओ, फिर
जलाओ रावण।
और पहले
समाज में
सिर उठाये
पनपती कुरीतियों
(अपहरण, हत्या,
भ्रष्टाचार, घूसखोरी,)
को भस्म करो, फिर
जलाओ रावण।
विजय-पर्व है
मनाओ धूमधाम से
पर पहले विजयी
स्वयं बनो, फिर
जलाओ रावण।
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