हिन्दी साहित्य
Tuesday, January 30, 2018
मेरी बगिया के फूल!
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
मेरी बगिया के फूल
ना यूँ मुरझाया करो।
तुम्हें देखकर ही
उदास पलों में
मुस्काये हैं हम।
जग की आँखों में
चुभे हैं हम।
तुम्हारे लिये ही
काँटे बने हैं हम।
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1 comment:
Unknown
February 2, 2018 at 11:08 AM
बहुत बढ़िया
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बहुत बढ़िया
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