हिन्दी साहित्य
Wednesday, January 2, 2019
चहकते पुर, ग्राम-परिसर, महकते वन छोड़कर
ध्वंस के उन्नत शिखर पर बस रहा है आदमी।
-डॉ0 गिरिजानन्दन त्रिगुणायत
‘
आकुल
’
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