हिन्दी साहित्य
Sunday, October 13, 2019
बैठकर मुस्का रही हो तुम
सच बहुत ही भा रही हो तुम।
बाँसुरी विस्मित समर्पित सी
गीत मेरा गा रही हो तुम।
एक अभिनव प्रेम का दर्शन
दृष्टि से समझा रही हो तुम।
डॉ0 रोहिताश्व अस्थाना
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