(हिन्दी साहित्य के प्रथम आत्म-कथाकार)
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि सन्
1586 ई. (जौनपुर)
पुण्य-तिथि सन्
1643 ई. (जौनपुर)
बनारसी दास जैन
एक कवि हैं और काव्य में ही इन्होंने अपना आत्म-चरित अर्ध कथानक नाम से
लिखा. यह हिन्दी साहित्य का ही नहीं वरन् किसी भी भारतीय भाषा में लिखा प्रथम
आत्म-चरित है. कवि ने 675 दोहा, चौपाई और सवैया में अपनी आत्म-कथा लिखी है. जब कवि
ने यह ग्रंथ लिखा उस समय उनकी आयु लगभग 55 वर्ष थी. जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति की
आयु 110 वर्ष होती है, इसीलिये उन्होंने अपने आत्म-चरित का नाम अर्ध कथानक रखा.
बनारसी दास जैन
के पिता का नाम खड्गसेन था और जौहरी थे. बनारसी दास जैन का युवावस्था में व्यापार में मन नहीं लगता था.
घर बैठे हुये मधुमालती और मृगावती पढ़ा करते थे, साथ ही
छंद-शास्त्र, आदि ग्रंथों का भी अध्ययन करते थे. युवावस्था में इश्कबाजी (अनेक
स्त्रियों से अवैध संबंध बनाने) के कारण इन्हें भयंकर रोगों का सामना करना पड़ा.
जिसके कारण सगे-सबंधियों ने इनसे नाता तोड़ लिया. नवरस पर भी इन्होंने ग्रंथ लिखा
था लेकिन उसमें अश्लीलता का पुट अधिक होने के कारण इन्होंने स्वयं ही ग्रंथ को
गंगा में बहा दिया.
आत्म-चरित के लिये आवश्यक
है कि रचियता अपने जीवन के, अपने चरित्र के गुण-दोषों का ईमानदारी से वर्णन करे.
साथ ही कथा कहते समय समसामयिकी का वर्णन भी होना चाहिये. बनारसी दास जैन के
आत्म-चरित में दोनों ही गुण देखने को मिलते हैं. इन्होंने अपने जीवन की अधिकांश
घटनाओं का सच्चाई से वर्णन किया है, अपने जीवन के कमजोर पक्ष को भी अभिव्यक्त किया
है.
उदाहरण-
कबहु आइ सबद उर धरै, कबहु जाइ आसिखी करै।
पोथी एक बनाइ नई, मित हजार दोहा चौपाई।
बनारसी दास
जैन
तामहिं णवरस-रचना लिखी, पै बिसेस बरनन आसिखी।
ऐसे कुकवि बनारसी भए, मिथ्या ग्रंथ बनाए नए।
बनारसी
दास जैन
कै पढ़ना कै आसिखी, मगन दुहू रस मांही।
खान-पान की सुध नहीं, रोजगार किछु नांहि।
बनारसी
दास जैन
दूसरे अर्ध कथानक में
समसामयिकी का वर्णन भी देखने को मिलता है. बनारसीदास जैन ने अपने जीवन काल में
अकबर, जहाँगीर व शाहजहाँ का शासन काल देखा था. जिसका वर्णन आत्म-चरित में किया है.
उदाहरण-
सम्बत सोलह स बासठा, आयौ कातिक पावस नठा।
छत्रपति आकबर साहि जलाल, नगर आगरै कीनौ काल।
बनारसी
दास जैन
आई खबर जौनपुर मांह, प्रजा अनाथ भई बिनु नाह।
पुरजन लोग भए भय-भीत, हिरद व्याकुलता मुख पीत।
बनारसी
दास जैन
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