Thursday, August 14, 2025

 

 अतिआधुनिक काल में हिन्दी काव्य में राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति-

                    डॉ. मंजूश्री 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी राष्ट्रीय भावना को अभिव्यक्त किया है-

सापेक्ष विश्व निर्मित है

कल्पना कला के लेखे।

यह भूमि दूसरा शशि है

कोई शशि से जा देखे।

                  जगदीश गुप्त

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वीर सैनिकों के मनोभाव को अभिव्यक्त किया है-

प्राण रहते

तो न देंगे

भूमि तिल-भर देश की

फिर भुजाओं को नये

संकल्प रक्षाबंध दो।

           शैलेश मटियानी

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ने उन वीर सैनिकों के सम्मान में कही हैं जिन्होंने आमने-सामने के युद्ध में विजय हासिल कर अपनी शौर्य गाथायें लिखीं-

 

जिन्होंने बर्फ में भी शौर्य की चिंगारियाँ बो दीं

पहाड़ी चोटियों पर भी अभय की क्यारियाँ बो दीं।

भगाकर दूर सारे गीदड़ों, सारे श्रृंगालों को

जिन्होंने सिंह वाले युद्ध में खुद्दारियाँ बो दीं।

 

अहर्निश जो बढ़े आगे विजय-अभियान की खातिर

उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा।

                                          उर्मिलेश शंखधार

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-

उठें कि हम जो सो रहे हैं अब उन्हें झिंझोड़ दें

नवीन क्रांति दें, स्वदेश को नवीन मोड़ दें

समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों का साथ छोड़ दें

स्वदेश के चरित्र को पवित्रता से जोड़ दें

न छोड़ें मानवीयता

न भूलें भारतीयता

विवेक से अनेकता में एकता बनी रहे।

         उर्मिलेश शंखधार

 

स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय खादी पहनना स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों की आवश्यकता थी. स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों ने विदेशी रेशमी वस्त्रों का वहिष्कार किया और देश में बने हुये सूती खादी के वस्त्रों को बढ़ावा दिया. लेकिन आजकल देश में ही विविध भाँति के रेशमी वस्त्र तैय्यार हो रहे हैं तब नेताओं को केवल दिखावे के लिये ही खादी के वस्त्र धारण करने होते हैं. इसी भाव की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में हुई है-

चुभी थी फाँस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी

न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना।

                        राणाप्रताप सिंह

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जनता से अनुरोध कर रहा है कि जात-पात को भूलकर सही व्यक्तियों के हाथ में सत्ता सौंपों ताकि देश के साथ-साथ तुम्हारा भी हित हो-

बूँद-बूँद सागर बने, वोट-वोट सरकार।

सही व्यक्ति जितवाइये, जात-पात बेकार।

                             कुलभूषण व्यास

 

मतदान होते रहे। मैं अपनी सम्मोहित बुद्धि के नीचे

उसी लोकनायक को बार-बार चुनता रहा,

जिसके पास हर शंका और सवाल का एक ही जबाब था

यानि की कोट के बटन-होल में

महकता फूल एक गुलाब का।

                     धूमिल

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने व्यक्ति को राजशक्ति की संहारक शक्ति के प्रति सचेत किया है कि वह कोई भी सौदा करे पर व्यक्ति-स्वातंत्र्य का सौदा कदापि न करे. वही तत्व सबसे ज्यादा कीमती है. राजशक्ति तो यही चाहती है कि-

प्रत्येक व्यक्ति

बंद ताले की भाँति कर दिया जाये

जिसकी ताली

राजकोष में जमा कर दी गई हो।

                   नरेश मेहता

 

अकेला दुर्योधन ही,

दुर्विनीत नहीं था अर्जुन,

व्यवस्था का मुकुट धारण करते ही

किसी भी व्यक्ति का

मनुष्यत्व नष्ट हो जाता है

                   नरेश मेहता

आपातकाल के समय में जब प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गयी थी, उसी संवेदना की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने की है-

उफ! डॉक्टर के मना करने पर भी

बन्द नहीं कर पाया हूँ-सोचना।

सुना है अमन चैन के लिये सरकार ने

सोचने पर लगा दिया है- प्रतिबन्ध।

                           धूमिल

आपातकाल के बाद हुये आम चुनावों में जनता दल की विजय का वर्णन कवि ने एक जन प्रचलित कहानी के माध्यम से किया है-

दम लगाया हर एक कबूतर ने

वरना कोई उड़ा नहीं होता।

                               डॉ. महेन्द्र कुमार अग्रवाल

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