हिन्दी साहित्य
Wednesday, September 30, 2015
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
दर्पण जैसे
आईना बनो तुम
रूप निहारूँ।
दिखेगा तुम्हें
अक्स अपना ही
मेरी आँखों में।
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