रानी पद्मिनी
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रानी पद्मिनी सिंघल द्वीप(श्रीलंका) की
राजकुमारी व चित्तौड़ के राजा रतनसेन की पत्नी थी. रानी पद्मिनी अत्यंत सुंदर, वीर व बुद्धिमान थी. दूर-दूर
तक राना पद्मिनी के रूप-गुण की चर्चायें हुआ करती थीं. जब आक्रमणकारी अलाउद्दीन
खिलजी ने रानी पद्मिनी के बारे में सुना, तो उसके मन में रानी पद्मिनी से मिलने की तीव्र अभिलाषा जाग्रत हुई,
उसने राजा रतनसेन के पास प्रस्ताव रखा कि वह आपको भाई मानता है और
एक बार रानी पद्मिनी से मिलना चाहता है.
जब राजा रतनसेन ने अलाउद्दीन खिलजी का प्रस्ताव रानी पद्मिनी से कहा तो वह सुल्तान
अलाउद्दीन खिलजी की कुटिल चाल समझ गयी.
उसने कहा, “अलाउद्दीन खिलजी केवल मेरा प्रतिबिम्ब शीशे में
देख सकता है.”
अलाउद्दीन खिलजी अपने सीमित सैनिकों के साथ
चित्तौड़ गया और वहाँ रानी पद्मिनी के अपूर्व सौंदर्य को आईने में देखकर ही इतना
मोहित हो गया कि उसको पाने के लिये बेचैन हो गया. धोखे से राजा रतनसेन को बंदी
बनाकर अपने खेमे(कैम्प) में ले आया और रानी पद्मिनी को संदेश भिजवाया कि यदि अपने
पति राजा रतनसेन को जीवित देखना चाहती हो तो स्वंय खेमे में आकर अपने आप को
समर्पित करें. पद्मिनी ने बुद्दिमानी से काम लेते हुये दूसरे दिन एक सौ पचास पालकियाँ
तैय्यार कराई. उनमें अपनी सखी व नौकरानियों की जगह नारी वेश में चित्तौड़ के जाबांज
सिपाहियों को लेकर अलाउद्दीन खिलजी के खेमे में गयीं और राजा रतनसेन को आजाद कराकर
चित्तौड़ वापस आ गयी.
1.
तब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर सीधे
आक्रमण बोल दिया. राजा रतनसेन अपने सिपाहियों के साथ किले के अंदर से ही वीरता के
साथ अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना का सामना करते रहे. धीरे-धीरे चित्तौड़ की सेना
कम होती जा रही थी. दूसरे अलाउद्दीन खिलजी ने वह मार्ग भी बंद कर दिया था जिससे
रसद किले में पहुँचाई जा रही थी. किले के अंदर का सामान धीरे-धीरे कम होता गया. तब
राजा रतनसेन और उसकी सेना ने केसरिया पगड़ी बाँध कर, किले के द्वार खोलकर सीधे अलाउद्दीन खिलजी की सेना से युद्ध
किया और किले के अंदर रानी पद्मिनी के साथ सभी नारियों ने संपूर्ण श्रंगार कर
सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित कर अपने आपको अग्नि में समर्पित कर ‘जौहर’ किया. जब
चित्तौड़ की सेना पर विजय प्राप्त कर अलाउद्दीन खिलजी व उसकी सेना ने किले में
प्रवेश किया तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मानों जीत के भी हार गये हों.
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