Wednesday, June 4, 2025


अपना नाम, अस्तित्व, मिठास सब समाहित कर देती है।

ऐसा प्यार और कौन करेगा सागर से, जैसा नदी करती है।।

 

                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

No comments:

Post a Comment