Monday, November 17, 2025


कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पर लगते, मेले मावस-पूनों। 

जलते अनगिन दीप, गंगा की धारा पर।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

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