लौंग
डॉ. मंजूश्री गर्ग
लौंग एक कलिका है। लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum है। अंग्रेजी में इसे clove कहते हैं जो लैटिन भाषा
के क्लैवस(clavus) से आया है। लौंग एक प्रकार का गरम मसाला
है जो भारतीय पकवानों व औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूजा में भी लौंग का
प्रयोग किया जाता है। नवरात्रों में दुर्गाजी की पूजा में ज्योत में लौंग जोड़ा
चढ़ाने का विधान है।
चीन में लौंग का प्रयोग ईसा से तीन शताब्दी पूर्व से होता आ
रहा है लेकिन यूरोप में इसका प्रयोग सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगाल में मलैका द्रीप
खोज के बाद शुरू हुआ। प्रायः सभी उष्ण कटिबंध देशों में लौंग का उत्पादन होता है-
भारत, जमैका, ब्राजील, सुमात्रा, पोबा, वेस्ट इंडीज, आदि।
लौंग के बीज से पौधे धीरे-धीरे पनपते हैं, इसलिये नर्सरी से
चार फुट ऊँचे पौधे लाकर लगाना अच्छा रहता है। बर्षा के मौसम में 20 फुट से 30 फुट
की दूरी पर यह पौध लगानी चाहिये। पहले वर्ष तेज हवा व धूप से पौधों को बचाना
चाहिये। लौंग के पेड़ पर छठे वर्ष फूल लगने आरंभ हो जाते हैं और 12 से 25 वर्ष तक
अधिक उपज होती है पर 150 वर्ष तक थोड़ा-बहुत लौंग मिलता रहता।
लौंग के फूल गुच्छों सें सुर्ख लाल खिलते हैं, लेकिन फूल
खिलने से पहले ही कलियाँ तोड़ ली जाती हैं। ताजी कलियों का रंग ललाई लिये हुये या
हरा होता है। अच्छे मौसम में इन्हें धूप में सुखा लेते हैं और बदली होने पर आग पर
सुखाते हैं। सुखाने के बाद लगभग 40% लौंग ही बचती हैं।
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