हिन्दी साहित्य
Friday, December 4, 2015
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रिश्ते उलझे
तोड़ो या छोड़ो यूँ ही
बिन सुलझे।
अत्याचार
जो सहे, या जो करे
दोनों ही दोषी।
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