हिंदी भाषा का क्रमिक विकास
एवम भविष्य
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
विश्व के विशालतम भाषा परिवार भारत-यूरोपीय
भाषा-परिवार से हिंदी भाषा का सम्बंध है; क्योंकि
भारत की महान भाषा संस्कृत, जिसे देववाणी
भी कहा जाता है, भारत-यूरोपीय परिवार की है और हिंदी भाषा की
जननी संस्कृत ही है. हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है, जिसका
क्रमिक विकास ‘ब्राह्मी लिपि’ से हुआ
है.
भारत-यूरोपीय
भाषा परिवार की भारतीय शाखा को ‘भारतीय
आर्य-भाषा शाखा’ भी कहा जाता है. इसकी प्राचीनतम भाषा ‘वैदिक संस्कृत’ है. इसका समय 1500 ई0पू0 से 800
ई0पू0 तक माना जाता है. इसी में चारों वेदों(ऋग्वेद, सामवेद,
अर्थवेद, यजुर्वेद) की रचना हुई है. इसके बाद
लौकिक संस्कृत का विकास हुआ, जिसका समय 800 ई0पू0 से 500
ई0पू0 तक माना जाता है. लौकिक संस्कृत भाषा में ही आदिकवि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ महाकाव्य की रचना की और वेदव्यास जी ने ‘महाभारत’ की. लौकिक संस्कृत का परिवर्तित रूप पाली
प्राकृत के रूप में विकसित हुआ, जिसमें बौद्ध साहित्य की
रचना हुई. इसका समय 500 ई0पू0 से 500 ई0 तक माना जाता है. प्राकृत भाषा का
परिवर्तित रूप अपभ्रंश है, जिसका समय 500 ई0 से 1000 ई0 तक
माना जाता है. इसी में हिंदी साहित्य के आदि काल के कुछ प्रमुख ग्रंथों की रचना
हुई; जैसे- ‘पृथ्वीराज रासो’, ‘हम्मीर रासो’, ‘वीसलदेव रासो’, आदि. इसी समय अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में पहेलियाँ और मुकरियों की रचना
कीं. जिसका वास्तविक विकास बीसवीं शताब्दी में हुआ. द्रविड़-परिवार की तमिल,
तेलगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं को छोड़कर भारतकी
प्रमुख भाषा हिंदी व अन्य भाषायें(सिंधी, पंजाबी, गुजराती, मराठी,
उड़िया, असमिया, बंगला,
आदि) अपभ्रंश से ही विकसित हुई हैं.
1000
ई0 के बाद हिंदी साहित्य की रचना हिंदी या हिंदी की उपभाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं
में हुई. हिंदी के प्रमुख पाँच रूप हैं. पहला रूप - पश्चिमी हिंदी- इस
के अंतर्गत खड़ी बोली, ब्रज भाषा,
हरियाणवी, बुंदेली, कन्नौजी,
आदि बोलियाँ आती हैं. खड़ी बोली हिंदी को स्वतंत्र भारत में राष्ट्र
भाषा का सम्मान प्राप्त है. भारतेंदु जी के समय से खड़ी बोली हिंदी का निरंतर विकास
हो रहा है. हिंदी गद्य-साहित्य की यही प्रमुख भाषा है. पश्चिमी हिंदी की ब्रज भाषा
हिंदी काव्य साहित्य की प्रमुख भाषा रही है. मध्यकाल में तो ब्रज भाषा साहित्य की
प्रमुख भाषा थी ही, कृष्ण काव्य इसी भाषा में लिखा गया.
रीतिकालीन काव्य भी इसी भाषा में लिखा गया. आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेता
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने भी काव्य के लिये ब्रज भाषा को ही उपयुक्त माना. सूरदास,
बिहारीलाल, आदि ब्रज भाषा के प्रमुख कवि हैं. दूसरा
रूप - पूर्वी हिंदी - इसके
अंतर्गत अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी बोलियाँ आती हैं. हिंदी
साहित्य में अवधी भाषा का विशेष स्थान है. गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरित मानस’ और मलिक मोहम्म्द जायसी कृत ‘पद्मावत’ महाकाव्य की रचना अवधी भाषा में ही हुई है.
तीसरा रूप – बिहारी हिंदी – इसमें मैथिली, मगही,
भोजपुरी बोलियाँ आती हैं. मैथिल कोकिल विद्यापति की ‘पदावली’ मैथिली में लिखी गई महत्वपूर्ण रचना है. चौथा
रूप – राजस्थानी हिंदी – इसके अंतर्गत मारवाड़ी, जयपुरी,
मेवाती, मालवी बोलियाँ आती हैं. पाँचवा
रूप – पहाड़ी हिंदी – इसके अंतर्गत गढवाली, कुमायूँनी
और हिमाचली बोलियाँ आती हैं.राजस्थानी
और पहाड़ी बोलियों ने भी हिंदी साहित्य के भण्डार को समृद्ध किया है.
वर्तमान
समय में खड़ी बोली हिंदी में साहित्य रचना के साथ-साथ समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पाठ्य
पुस्तकों का भी प्रकाशन हो रहा है. हिंदी भाषा का अपना एक सर्वमान्य मानक रूप है,
अपना व्याकरण है, जिसके माध्यम से हिंदी भाषा
का शुद्ध एवं सर्वमान्य रूप बोलना, समझना, लिखना तथा पढ़ना सरल हो गया है. सरकारी कार्यालयों और प्रतिष्ठनों में भी
हिंदी भाषा का प्रचलन है. पठन-पाठन का माध्यम भी खड़ी बोली को ही स्वीकार किया गया
है. इसी कारण साहित्य के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य-व्यापार,
शिक्षा माध्यम और तकनीकी कार्यों की भाषा के रूप में भी हिंदी भाषा
का विकास हो रहा है. न केवल भारत में वरन विदेशी विश्व विद्यालयों में भी हिंदी
भाषा पढ़ाई जाने लगी है. हिंदी भाषा की कुछ विशेषतायें हैं जो उसके महत्व को
प्रतिपादित करती हैं; जैसे--------
1. हिंदी भाषा
पर्याप्त वैज्ञानिक है. इसमें जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है.
2.
विश्व की
लगभग सभी भाषाएँ हिंदी की देवनागरी लिपि में लिखी जा सकती हैं.
3.
हिंदी भाषा
सरल, व्यवहारिक व जीवंत है.
4.
हिंदी भाषा
का शब्द-भण्डार विपुल है. संस्कृत के साथ-साथ अन्य भाषाओं(अरबी, फारसी, अंग्रेजी,
उर्दु,आदि) के हजारों शब्दों को आत्मसात करने
के साथ-साथ अन्य भाषाओं के उपसर्ग व प्रत्ययों का प्रयोग कर अनेक शब्दों का
निर्माण किया है.
5.
ज्ञान-विज्ञान
की शिक्षा देने में भी हिंदी भाषा सक्षम है. इसमें तकनीकी व वैज्ञानिक शब्दावली का
पर्याप्त विकास हुआ है.
6.
विज्ञान के
साथ-साथ वाणिज्य-व्यापार की शिक्षा देने में भी हिंदी भाषा समर्थ है.
7.
भारत के
अधिकांश भाग में बोली व समझी जाने के कारण हिंदी भाषा राष्ट्रीय एकता का माध्यम
रहा है.
हिंदी भाषा अपने महत्व व व्यापकता के आधार पर ही भारत की
राष्ट्र भाषा है और भविष्य में अपनी कोमलकांत पदावली और सरलता के कारण विश्वभाषा
का स्थान प्राप्त करने में सक्षम होगी. आज भी हिंदी विश्व की तीन प्रमुख भाषाओं
में से एक है. बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी का स्थान केवल चीनी और
अंग्रेजी के बाद है.
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी का स्वरूप निर्धारित करते समय यह
ध्यान रखना आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय हिंदी का व्याकरण और शब्द-भण्डार मानक
हिंदी का ही होना चाहिए, जो भाषा के
केंद्रीय तत्त्वों से सम्बंधित हैं. भाषा में अन्य परिवर्तन देश-विदेश अपनी
सुविधानुसार परिधीय तत्त्व के रूप में कर सकते हैं. उदाहरणार्थ- अंग्रेजी भाषा की
संरचना में जो केंद्रीय तत्त्व हैं वे ब्रिटिश अंग्रेजी, अमरीकी
अंग्रेजी, आस्ट्रेलियाई अंग्रेजी, आदि
अंग्रेजी के सभी रूपों में समान हैं और
केंद्रीय तत्त्वों के आधार पर वह अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनी है; जबकि ब्रिटिश अंग्रेजी और अमेरिकी अंग्रेजी में वर्तनी, उच्चारण, शब्द-भण्डार, अर्थ,
वाक्य-रचना, सभी दृष्टियों से पर्याप्त
विभिन्नता पाई जाती है.
--------------------------------------------------------------
----------------------------------------------
No comments:
Post a Comment