भाषा(सम्पत्ति)
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
भाषा हमारी वह सम्पत्ति है जो हमें परम्परा से प्राप्त होती है. हिन्दी भाषा
बोलने वाले परिवारों के बच्चे स्वतः ही हिन्दी भाषा सीख जाते हैं, ऐसे ही अंग्रेजी
भाषा बोलने बाले परिवारों के बच्चे अंग्रेजी भाषा और अन्य किसी भाषा के बोलने बाले
परिवारों के बच्चे अपने परिवार की भाषा साधारण रूप से सीख जाते हैं. इस प्रकार भाषा
हमारी पैतृक सम्पत्ति है. स्वाभाविक रूप से सीखी भाषा साधारण बोल-चाल की ही
भाषा होती है, उसके व्याकरणिक रूप का ज्ञान अध्ययन द्वारा प्राप्त किया जाता है.
अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाओं का ज्ञान भी अध्ययन के द्वारा प्राप्त किया
जा सकता है. कुछ विद्वानों को अनेक भाषाओं का ज्ञान होता है. इस प्रकार भाषा
हमारी अर्जित सम्पत्ति भी है. साथ ही व्यक्ति जिस समाज में रहता है, धीरे-धीरे
वहाँ की भाषा स्वभावतः सीख जाता है. जैसे दक्षिण भाषी प्रदेशों का व्यक्ति जब
हिन्दी भाषी प्रदेशों में आता है, तो धीरे-धीरे हिन्दी भाषा सीख जाता है. इस
प्रकार भाषा हमारी सामाजिक सम्पत्ति भी है।
भाषा परिवर्तनशील और स्थिर है-
भाषा का निरन्तर विकास होता रहता है. समय-समय पर कुछ शब्दों के रूप परिवर्तित
हो जाते हैं, कुछ अन्य भाषाओं के शब्द सम्मिलित हो जाते हैं, कुछ नये प्रयोग होते
हैं. हिन्दी भाषा का
विकास संस्कृत भाषा से हुआ है, काफी कुछ शब्द हिन्दी भाषा में ऐसे ही ले लिये गये,
तो कुछ शब्दों का रूप परिवर्तित हो गया. जैसे- संस्कृत का पत्र शब्द
हिन्दी में पत्ता बन गया और कुम्भकार कुम्हार. कुछ
नये प्रयोग भी किये गये हैं. जैसे आजकल वर्णमाला के अनुनासिक वर्ण के लिये न
को ही मान्यता मिल गयी है और इसकी मात्रा के रूप में बिन्दु को ही. विराम
चिह्न भी अब बिन्दु (.) रूप में प्रयोग में लाया जाता है. फिर भाषा का एक
निश्चित मानक रूप व व्याकरण होने के कारण भाषा स्थिर रह पाती है. इस तरह हम कह
सकते हैं कि भाषा परिवर्तनशील भी है और स्थिर भी.
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