सुभद्रा और अर्जुन का विवाह
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
सुभद्रा कृष्ण और
बलराम की बहन थीं और अर्जुन कुन्ती-पुत्र थे. यद्यपि अर्जुन का विवाह द्रौपदी से
हो चुका था किन्तु द्रौपदी पाँचों पांडवों की पत्नी थी और उस विवाह के कुछ नियम
थे. एक बार किसी कारणवश अर्जुन ने विवाह का नियम भंग कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप
उन्हें बारह वर्ष तक वन में वास करना था. तब अर्जुन वन में घूमते हुये एक बार
द्वारिकापुरी आये, वहाँ सुभद्रा के विवाह के विषय में सुना. श्रीकृष्ण सुभद्रा का
विवाह अर्जुन से करना चाहते थे, किन्तु बलराम जी दुर्योधन से. अर्जुन ने जब
सुभद्रा को देखा तो उसके रूप, गुण व शील पर मोहित हो गये और उसको पाने की लालसा मन
में उत्पन्न हुई, इधर सुभद्रा भी मन ही मन अर्जुन को चाहने लगी. जब श्रीकृष्ण ने
अर्जुन और सुभद्रा के मन के भाव को जाना तो दोनों के मिलन का उपाय सोचने लगे. तब
एक दिन अर्जुन से कहा “तुम शिव-रात्री तक यहीं रूको. शिव-रात्रि के दिन सभी
द्वारिकावासी रैयत-पर्वत पर शिव की पूजा के लिये जायेंगे, सुभद्रा भी जायेगी. तुम
वहाँ से सुभद्रा का हरण कर सीधे हस्तिनापुर चले जाना. यदि कोई तुम्हारा सामना करे,
तो निर्भय होकर युद्ध करना.” श्रीकृष्ण के कहने के
अनुसार शिव-रात्रि के दिन अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया और सीधे हस्तिनापुर चले
गये.
श्री बलराम ने जब
सुभद्रा-हरण का समाचार सुना तो अत्यन्त क्रोधित हुये और यदुवंशियों को साथ लेकर अर्जुन से युद्ध करने को तैय्यार हुये. तब
श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया, “हे दादा! अर्जुन हमारी बुआ का बेटा, मित्र और कुलीन है, उसके बराबर
यदुवंशियों में कोई भी नहीं है. यद्यपि उसने यह अनुचित कार्य किया है फिर भी उससे
युद्ध करना उचित नहीं है. अच्छा है हम अर्जुन और सुभद्रा के विवाह को स्वीकार कर
लें और विवाह के उपलक्ष्य में उचित उपहार लेकर हस्तिनापुर जायें.” इस तरह सर्वसम्मति से हस्तिनापुर में अर्जुन और सुभद्रा का
विवाह हुआ, जिनसे वीर और तेजस्वी अभिमन्यु उत्पन्न हुआ.
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