लिपि का विकास
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
“लिपि से अभिप्राय
ऐसे प्रतीक और चिह्नों से है जिनके माध्यम से किसी भाषा में भाव और विचार लिखित
रूप में अभिव्यक्त होते हैं.”
डॉ0
मंजूश्री गर्ग
प्राचीन लिपि
सूत्र लिपि चित्रलिपि
(रस्सी में गाँठे लगाना) (चित्र
द्वारा भाव प्रकट करना)
लिपि का वास्तविक विकास चित्रलिपि से हुआ है. पहले स्थूल चित्र बनाये जाते थे,
बाद में सूक्ष्म भावों को प्रकट करने वाले चित्र बनाये जाने लगे-जैसे-पहाड़ का
चित्र पहाड़ का ही बोध न कराकर उच्चता, महत्ता का भी बोध कराता है. इस प्रकार
चित्र लिपि ने भाव लिपि का रूप धारण किया. आज भी चीन, जापान और कोरिया की भाषायें
चित्र लिपि पर ही आधारित हैं. इसी प्रकार की एक फोनीशियाई लिपि है. तिकोनी होने के
कारण इसे तिकोनी लिपि भी कहते हैं. यही लिपि अर्द्ध अक्षरात्मक और अक्षरात्मक
स्थिति से गुजरते हुये ध्वन्यात्मक या वर्णात्मक हो गयी.
अक्षरात्मक लिपि में प्रत्येक इकाई में एक से अधिक वर्ण जुड़े होते हैं, जबकि
वर्णात्मक लिपि में प्रत्येक इकाई स्वतन्त्र वर्ण होती है.
विश्व की प्राचीन ब्राह्मी
लिपि अक्षरात्मक है. यह बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है. ब्राह्मी लिपि से ही
देवनागरी लिपि का विकास हुआ है. हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है.
अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी की रोमन लिपि है. यह वर्णात्मक है-इसमें हर वर्ण
अलग लिखा जाता है. देवनागरी लिपि में मात्राओं के अलग से चिह्न होते हैं जबकि रोमन
लिपि में मात्रायें वर्णों द्वारा ही लिखी जाती हैं, जैसे- राम, केशव (देवनागरी लिपि)
Ram, Keshav(रोमन लिपि)
इस प्रकार विश्व की सभी भाषाओं की
लिपि चित्र लिपि, ब्राह्मी लिपि या फोनीशियाई लिपि से ही विकसित हुई हैं.
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