हिन्दी साहित्य
Thursday, September 8, 2016
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
दूर से सही
पैगाम तो भेजिये
बँधेगी आस।
सूरज नहीं
देखो! उजाले लिये
आये हैं हम।
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