गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
यादों के दिये, जब-जब जले,
निशान और भी, गहरे हुये।
उजालों के लिये, जब-जब लड़े,
अँधेरे और भी, गहरे हुये ।
फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,
उपवन ने दिये, चुभते हुये।
पानी के लिये, जब-जब झुके,
नदी ने दिया, सहमे हुये।
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