Thursday, September 29, 2016

गजल

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

यादों के दिये, जब-जब जले,
निशान और भी, गहरे हुये।

उजालों के लिये, जब-जब लड़े,
अँधेरे  और  भी, गहरे हुये ।

फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,
उपवन ने दिये, चुभते हुये।

पानी के लिये, जब-जब झुके,
नदी  ने  दिया, सहमे हुये।

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