Thursday, October 27, 2016

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कार्तिक मास
सजी दीपमालायें
मावस-रात।

तोरण द्वार
रंगोली आँगन में
सजी दीवाली।

द्वार-द्वार पे
सजी दीपमालायें
दीवाली रात।

उत्सव-पल
खुशी नहीं समाती
मन-आँगन।

दीवाली-रात
धरती से गगन
सजी रोशनी।

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