Thursday, September 25, 2025


वृक्ष की व्यथा

 

किसलिये? किसके लिये जी रहे हैं हम?

ताप, शीत, झंझायें  सह  रहे  हैं  हम.

विष  पीकर  अमृत  दे  रहे  हैं  हम.

फिर  भी  चोटें  सह  रहे  हैं  हम।

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

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