Monday, September 29, 2025

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने माँ सरस्वती की आराधना की है-

दासन पै दाहिनी परम हंसवाहिनी हौ,

पोथी कर, वीना सुरमंडल मढ़त है।

आसन कँवल, अंग अंबर धवल,

मुख चंद सो अंवल, रंग नवल चढ़त है।

ऐसी मातु भारती की आरति करत थान,

जाको जस विधि ऐसो पंड़ित पढ़त है।

ताकी दयादीहि लाख पाथर निराखर के,

मुख ते मधुर मंजु आखर कढ़त है।

                            थान


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