नचिकेता की कथा
-डॉ0 मंजूश्री गर्ग
-डॉ0 मंजूश्री गर्ग
नचिकेता प्रसिद्ध ऋषि वाजश्रवा के पुत्र थे. एक
बार वाजश्रवा ने एक अनोखा अनुष्ठान किया, जिसमें
अपनी सारी धन-संपत्ति दीन-दुखियों व ब्राह्मण-पुरोहितों को दान कर दी. जब वे अपनी
सारी संपत्ति बाँटने में व्यस्त थे, तो बालक नचिकेता ने मन में सोचा कि अवश्य पिताजी ने मुझे भी दान कर दिया
है. तब उसके मन में जिज्ञासा जाग्रत हुई कि पिताजी ने दान में मुझे किसे दिया है.
उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, आपने
मुझे किसको दान कर दिया है.”
वाजश्रवा ने कोई उत्तर नहीं दिया. नचिकेता के बार-बार पूछने पर वाजश्रवा ने झुँझला कर कहा, “यमराज को.” यह सुनकर नचिकेता सहित आसपास
खड़े जन स्तब्ध रह गये. कहने के बाद वाजश्रवा को धक्का सा लगा. नचिकेता सोचने लगा कि,
“मैंने ऐसा क्या किया कि पिता को मेरी मृत्यु की कामना करनी पड़ी.
अवश्य ही यही मेरा प्रारब्ध है कि यमराज से मेरी भेंट हो."
सभी
के मना करने पर भी नचिकेता यमराज से मिलने यमलोक चला गया, किंतु उस समय वहाँ यमराज नहीं थे. तीन दिन,
तीन रातें बिना कुछ खाये-पिये वह यमराज की प्रतीक्षा करता रहा. जब
यमराज लौटे तो बालक के अपूर्व साहस और दृढ़ निश्चय को देखकर बहुत प्रसन्न हुये.
यमराज ने नचिकेता से तीन वर माँगने को कहा.
नचिकेता
ने पहला वर माँगा, “मेरे यहाँ
आने से मेरे पिता बहुत चिंतित और दुःखी होंगे. उनकी चिंता दूर हो और उनके मन को
शांति मिले.”
यमराज
ने कहा, “तथास्तु.”
नचिकेता
ने दूसरा वर माँगा, “स्वर्ग की
प्राप्ति कैसे होती है. स्वर्ग जहाँ न बुढ़ापे का भय है, न
मृत्यु का.”
यमराज
ने प्रसन्नता पूर्वक स्वर्ग प्राप्ति के साधन बता दिये.
नचिकेता
ने तीसरा वर माँगा, “यमराज! मुझे
मृत्यु का भेद बताइये. बताइये मृत्यु के बाद क्या होता है और मनुष्य अमर कैसे हो
सकता है.”
यमराज
दुविधा में पड़ गये, क्योंकि ये
बड़े गुप्त रहस्य की बात थी; जिनके बारे में ब्रह्म और यमराज
ही जानते थे.
यमराज
ने नचिकेता से कुछ और माँगने को कहा---धन, सत्ता अथवा राज्य. किंतु नचिकेता पर किसा भी प्रलोभन का असर नहीं हुआ.
यमराज हैरान थे कि इतने छोटे से बालक को ऐसी गूढ़ बातें जानने की कितनी जिज्ञासा
है. अंत में यमराज को नचिकेता के प्रश्नों के उत्तर देने ही पड़े. उन्होंने मनुष्य
के सच्चे रूप , यानि आत्मा को समझने की कठिनाईयाँ बतायीं.
यमराज
ने नचिकेता से कहा, “यदि तुम
आत्मा को भली प्रकार समझने में सफल हो जाओ तो तुम देखोगे कि मृत्यु एक छल मात्र है;
क्योंकि मनुष्य का सच्चा रूप तो आत्मा है, जो
कभी नहीं मरती. मरता तो केवल शरीर है."
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