हिन्दी साहित्य
Saturday, April 16, 2016
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
ख्बाब सजे
नींद की टहनी पे
जागे तो टूटे।
उतरेगी ही
कलई कितनी हो
खुलेगी पोल।
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