अमलतास
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पीताभ गुच्छ
झमरों से झूमते
अमलतास।
गर्मियों के
दिनों में सड़क किनारे या पार्कों में लगे गुच्छों के रूप में खिले पीले फूलों से
लदे अमलतास के पेड़ बरबस ही मन मोह लेते हैं. इसके सौंदर्य को देखते हुये इसे विभिन्न नामों से अलंकृत किया गया है.
आयुर्वेद में इसे ‘स्वर्ण वृक्ष’ कहते हैं. वाल्मीकि जी ने इसे ‘कंचन वृक्ष’ नाम दिया.
अंग्रेजी में इसे ‘गोल्डन शॉवर’ या ‘गोल्डन ट्री’ कहा जाता है. अमलतास थाइलैंड का राष्ट्रीय पुष्प है और
थाइलैंड की भाषा में इसे ‘डोक ख्यून’ नाम से जाना जाता है.
अमलतास मूल रूप
से दक्षिणी एशिया, दक्षिणी पाकिस्तान और भारत का वृक्ष है पर अमेरिका, म्यांमार,
श्रीलंका, बर्मा, वेस्टइंडीज में भी बहुतायत से पाया जाता है. यह सूर्य प्रिय
वृक्ष है जो लवण और अकाल की स्थिति को भी सह सकता है. बीज का अंकुरित होना थोड़ा
मुश्किल होता है लेकिन बीज एक बार जड़ पकड़ लें तो अमलतास के पेड़ आसानी से बड़े
हो जाते हैं. अमलतास को रूखा मौसम ज्यादा पसंद है परंतु जरा सी भी सर्दी बर्दाश्त
नहीं कर पाता.
अमलतास मध्यम
आकार का वृक्ष है जिसकी लम्बाई 10 मी. से 20 मी. तक होती है. अमलतास के पत्ते एक से ड़ेढ़ फुट लंबे, बड़े व
संयुक्त होते हैं, चार से
आठ पत्ते मिलकर
जोड़े बनाते हैं. फूलों के आगमन से पहले मार्च, अप्रैल के महीने में पत्तियाँ
झड़ने लगती हैं. अमलतास का फूल अप्रैल, मई, जून महीनों (भीषण गर्मी के समय) खिलता
है. अमलतास का फूल पीले रंग का
होता है, प्रत्येक फूल में पाँच पँखुरियाँ होती हैं जो 4 से. मी. से 7 से. मी. के व्यास में
सुव्यवस्थित होती हैं. अनेकों फूल मिलकर एक गुच्छे का रूप देते हैं. बारिश के मौसम
में अमलतास पर फल आते हैं. इसके फल को ‘लेग्यूम’ कहते हैं जो लगभग 30 से. मी. से 60 से. मी. लंबे फली के
आकार के होते हैं. ‘लेग्यूम’ की गंध बड़ी तीखी होती है. एक फली में 25 से 100 तक भूरे
रंग के बीज होते हैं. इसके बीज बहुत स्वादिष्ट होते हैं इसलिये इनमें कीड़ा लगने
का डर भी रहता है. फली के अन्दर का गूदा काले रंग का होता है तथा बहुत ही मीठा
होता है. यह गूदा पेट साफ करने के लिये दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.
अमलतास की
लकड़ी भूरा रंग लिये होती है तथा मजबूत, भारी व स्थायी होने के कारण फर्नीचर बनाने
के काम भी आती है. इस प्रकार अमलतास का पेड़ न केवल सौंदर्य की दृष्टि से, वरन्
उपयोग की दृष्टि से भी लाभकारी है.
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