हिन्दी साहित्य
Sunday, November 1, 2015
मस्त गगन में उड़ता पंछी
मत पिंजरे में कैद करो
जीते जी मर जायेगा
'गर पिंजरे में कैद हुआ.
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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