हिन्दी साहित्य
Sunday, August 14, 2016
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
कुंठित मन
बंजर धरा-सम
खिले ना फूल।
धूप धुली सी
बरसात के बाद
फैली आँगन।
-----------------------
------
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment