हिन्दी साहित्य
Friday, August 26, 2016
बनेंगे, मिटेंगे, नये साँचे में ढ़लेंगे।
मिट्टी के पुतले, कब तक जियेंगे ।।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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