Friday, November 28, 2025


वो निगाहों में ही इकरार किया, करते रहे,

उस निगाहे यार को ही पहचान नहीं पाया मैं।

                    संजीव कुमार सुधांशु 

Thursday, November 27, 2025


तुमसे  बँधी प्रीत, अनगिन रिश्ते बन गये।

किसी की मामी, किसी की चाची, किसी की भाभी बन गये ।।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 26, 2025


प्यार की बूँदों से सरसते हैं हम,

मृदु मुस्कान से निखरते हैं हम।

नजरों ही नजरों मे करते हैं बातें,

और दिन-दिन सँवरते हैं हम। 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, November 25, 2025


मुठ्ठी भर धूप उछाल दो,

गम के बादलों पे।

गम भी मुस्कुरायेंगे।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, November 24, 2025


 ओस की बूँदें

हरियाली घास पे

मोती सी सजीं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 23, 2025


मंजिल पानी है  'गर

अवरोधों से डरना कैसा।

कौन है? जिसने ताप सहा नहीं

सूरज जैसा चमका जो भी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 22, 2025


दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।

आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 21, 2025

कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,

टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 20, 2025


मोहक दृश्य

गंगा की धारा पर

तैरते दीप।

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 19, 2025


मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 18, 2025


राह तकते

बीत गये बरसों

राह ना सूझे।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

            

Monday, November 17, 2025


कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पर लगते, मेले मावस-पूनों। 

जलते अनगिन दीप, गंगा की धारा पर।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 16, 2025

 

हर चीज एक-दूसरे से

घुली-मिली हैं

जड़ें रोशनी में हैं

रोशनी गंध में

गंध विचारों में

विचार स्मृतियों में

स्मृतियाँ रंगों में------

            केदारनाथ सिंह


Saturday, November 15, 2025


यादों के शहर से फिर चली हैं हवायें,

छेड़ रहीं हैं मन के कोने-कोने।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 14, 2025


क्या मेरा? क्या तेरा साथी?

जो कुछ है इस जग का साथी।

क्या पाया? क्या खोया हमने?

जो पाया, जो खोया हमने,

जो कुछ है इस जग का साथी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 13, 2025


किसी को रंगने से पहले हाथ रगेंगे तुम्हारे।

देने से पहले खुशी किसी को खुशियों से भरेगा आँचल तुम्हारा।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 12, 2025


प्यार के रिश्ते बड़े अनमोल।

सहेज के रखें दिल की तिजोरी में।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 11, 2025


जब लौ प्रभु से लौ लगी है,

मन ठौर ना और कहुँ पाता।

सुबह श्री चरणों में होती

शाम श्री चरणों में होती ।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 10, 2025


कुछ पल साथ चलने की इजाजत दे दो।

उम्र-भर तुम्हारा साथ हम न छोड़ेंगे।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, November 9, 2025


धूमिल न होने दें सुनहरे पलों की यादें।

यादों के चिरागों से ही रोशन है जिंदगी।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, November 8, 2025


जीवन में जब आईं तुम

लगी भोर की किरण सी।

जीवन की कड़ी धूप में

मुस्काईं गुलमोहर सी।

जीवन की सांध्य बेला में

लगती हो चाँदनी सी।

 

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 7, 2025


राह अँधेरी है, दिखती नहीं राह है।

थामे रहना हाथ कान्हा, मंजिल दूर है।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 6, 2025


खिलते देख फूल हर्षित हुये हैं सूखे पात।

मानों दीवाली पे मुस्कायी हो मावस की रात।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 5, 2025


दो दिल मिले

सजी नयी दुनिया

प्रेम पथ में।

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 4, 2025


इतिहास हम बदल नहीं सकते,

लेकिन आज औ' कल तो हाथ में है ।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 3, 2025


लौंग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

लौंग एक कलिका है। लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum है। अंग्रेजी में इसे clove कहते हैं जो लैटिन भाषा के क्लैवस(clavus) से आया है। लौंग एक प्रकार का गरम मसाला है जो भारतीय पकवानों व औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूजा में भी लौंग का प्रयोग किया जाता है। नवरात्रों में दुर्गाजी की पूजा में ज्योत में लौंग जोड़ा चढ़ाने का विधान है।

चीन में लौंग का प्रयोग ईसा से तीन शताब्दी पूर्व से होता आ रहा है लेकिन यूरोप में इसका प्रयोग सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगाल में मलैका द्रीप खोज के बाद शुरू हुआ। प्रायः सभी उष्ण कटिबंध देशों में लौंग का उत्पादन होता है- भारत, जमैका, ब्राजील, सुमात्रा, पोबा, वेस्ट इंडीज, आदि।

लौंग के बीज से पौधे धीरे-धीरे पनपते हैं, इसलिये नर्सरी से चार फुट ऊँचे पौधे लाकर लगाना अच्छा रहता है। बर्षा के मौसम में 20 फुट से 30 फुट की दूरी पर यह पौध लगानी चाहिये। पहले वर्ष तेज हवा व धूप से पौधों को बचाना चाहिये। लौंग के पेड़ पर छठे वर्ष फूल लगने आरंभ हो जाते हैं और 12 से 25 वर्ष तक अधिक उपज होती है पर 150 वर्ष तक थोड़ा-बहुत लौंग मिलता रहता।

लौंग के फूल गुच्छों सें सुर्ख लाल खिलते हैं, लेकिन फूल खिलने से पहले ही कलियाँ तोड़ ली जाती हैं। ताजी कलियों का रंग ललाई लिये हुये या हरा होता है। अच्छे मौसम में इन्हें धूप में सुखा लेते हैं और बदली होने पर आग पर सुखाते हैं। सुखाने के बाद लगभग 40% लौंग ही बचती हैं।

 

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Sunday, November 2, 2025

 

'दूध' प्रेम का प्रतीक है जिस प्रकार दूध में जरा सी भी खटास आ जाये तो वह दूध दूध नहीं रहता, उसी प्रकार आपसी रिश्तों में जरा सी भी खटास आ जाये तो प्रेम प्रेम नहीं रहता।

                                                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 1, 2025


मन तो बाबरा पंछी है।

जिस डाल से उड़ाओ, उसी पे आ बैठता है।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग