हिन्दी साहित्य
Thursday, July 7, 2016
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
सहज मन
समर्पित तुमको
सारा जीवन।
चाहो जितना,
उड़ुँ पतंग सम,
तुम दो ढ़ील।
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