चाह मन मेरे
डॉ. मंजूश्री गर्ग
तुम्हें सागर सा
विस्तार मिले,
मैं लहर-लहर
लहराऊँ।
तुम्हें उपवन सा
संसार मिले,
मैं खुशबू बन
मुस्काऊँ।
रहो जहाँ भी
साजन तुम,
साथ तुम्हारा पाऊँ।
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