Tuesday, May 6, 2025

 

चाह मन मेरे

 डॉ. मंजूश्री गर्ग


तुम्हें सागर सा

विस्तार मिले,

मैं लहर-लहर

लहराऊँ।

 

तुम्हें उपवन सा

संसार मिले,

मैं खुशबू बन

मुस्काऊँ।

 

रहो जहाँ भी

साजन तुम,

चाह मन मेरे

साथ तुम्हारा पाऊँ।


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