Thursday, August 27, 2015

वृक्ष की व्यथा

किसलिये? किसके लिये जी रहे हैं हम?
ताप, शीत, झंझायें  सह  रहे  हैं  हम.
विष  पीकर  अमृत  दे  रहे  हैं  हम.
फिर  भी  चोटें  सह  रहे  हैं  हम.



                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



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