जिंदगी जीनी नहीं सीखी।
किससे करें शिकवा,
खुद ही रहे नासमझ।
प्रीत की।
प्रीत की रीति नहीं सीखी।
जिंदगी जी।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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